Akbar Birbal kahani in Hindi | Akbar Birbal Kahani | Birbal Stories

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Akbar Birbal kahani in Hindi
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बीरबल का संछिप्त परिचय

बीरबल (1528-1586) का असली नाम महेश था जो मुगल बादशाह अकबर के प्रशासन में मुगल दरबार का प्रमुख विज़ीर (वज़ीर-ए-आजम) था | बीरबल महान मुग़ल सम्राट अकबर के राजदरबार के नवरत्नों में प्रमुख थे- साधारणतया बीरबल का उल्लेख एक विदूषक के रूप में होता है – अकबर-बीरबल की आपसी नोक-झोंक व हास-परिहास के सैकड़ो किस्से व चुटकुले जनश्रुतियों में प्रचलित हैं, जिनके आधार पर बीरबल के विषय में एक आम धारणा यह है कि बीरबल एक विदूषक थे, जिनका एक मात्र काम अकबर का मनोविनोद करना और राजदरबार के गंभीर वातावरण को हल्का बनाना था| लकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है-तत्कालीन ऐतिहासिक ग्रंथों के अध्यन से बीरबल के बहुआयामी व्यक्तित्व के सम्बन्ध में ढेर सारे अकाट्य प्रमाण मिलते हैं और यह निष्कर्ष निकलता है कि बीरबल मात्र एक विदूषक ही नहीं बल्कि एक बहादुर योद्धा, प्रख्यात दानवीर, रीति-नीति व धर्म के प्रकांड विद्वान तथा तत्कालीन रीति परंपरा के कुशल कवि थे |

– कवि भूषण ने अपने ग्रन्थ शिवराज भूषण में बीरबल को घाटमपुर तहसील के तिकवांपुर नामक गॉव का निवासी बताया है किन्तु स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार बीरबल दहिलर नामक गॉव के निवासी थे- चूँकि दहिलर और तिकवांपुर पास-पास ही स्थित हैं अतः इस विवाद में अधिक गुंजाइश नहीं है | शिव सिंह सरोज के अनुसार, बीरबल कान्यकुम्बज ब्राह्मण थे-बताया जाता है कि बीरबल का वास्तविक नाम ब्रह्मा था और इनके पिता का नाम गंगा दास था |

बीरबल कि उपाधि इन्हे सम्राट अकबर से मिली थी- कहा जाता है कि अकबर के दरबार में जाने से पहले काफी दिनों तक वे कालपी, कालिंजर तथा रीवां नरेश के दरबार में भी कवि के रूप में रह चुके थे |

अकबर कि लोकप्रियता कि खबर सुनकर ही ये उनके दरबार में गये थे- इनकी काव्यकुशलता और वाक्पटुता से अकबर इतना प्रभावित हुआ कि उसने राजा बीरबल कि उपाधि तथा कई गॉव की जागीर देकर इन्हे स्थायी रूप से अपने पास रख लिया |

सम्राट अकबर बीरबल की विद्व्ता और वाक्पटुता से इतना अधिक प्रभावित था कि उसने बीरबल को सेवक नहीं, एक अंतरंग मित्र का स्थान दे रखा था | कहा जाता है कि हिन्दू धर्म के प्रति अकबर कि उदारता और सहीसुणता बीरबर कि प्रेरणा कि वजह से ही थी | सम्राट अकबर बीरबल से कितना अधिक प्रभावित था और उनकी कितनी इज़्ज़त करता था, इसका उल्लेख अबुलफजल ने अकबरनामा में कई जगह किया है- बीरबल भी पूर्णरूपेण सम्राट अकबर के प्रति समर्पित थे- उन्हें अकबर कि न सिर्फ बौद्धिक पिपासा शांत कि बल्कि विभिन्न युद्धों में भाग लेकर अकबर के साम्राज्य विस्तार में भी उन्होंने सक्रिय योगदान दिया- बीरबल कि मृत्यु 1586 को पशिमोत्तर प्रान्त की लड़ाई में लड़ते हुए ही हुई थी|

दानवीर बीरबल

बीरबल अपनी दानवीरता और धर्मप्रियता के लिय भी काफी प्रसिद्ध थे-बीरबल की दानवीरता और धर्मप्रियता काफी प्रसिद्ध थी |

बीरबल कि धर्मप्रियता के प्रमाण उनके द्वारा बनाये गये मंदिर हैं- अपने सम्राट अकबर के नाम पर उन्होंने यमुना नदी के किनारे अकबरपुर नाम का एक गॉव बसाया जो अब बीरबल का अकबरपुर के नाम से प्रसिद्ध है और कानपूर देहात जिले के घाटमपुर तहसील में स्थित है- बीरबल ने यहाँ देवी-देवताओं के कई मंदिर बनवाए जिनके खंडर आज भी यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं | अपने गॉव के पास कानपूर-हमीरपुर मुख्य मार्ग के किनारे सचेंडी नामक गॉव में इन्होने भगवान शंकर के एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और उस मंदिर के सञ्चालन के लिय आस-पास के अस्सी गॉवों से वृत्ति बांध दी- यह मंदिर बेरबलेशवस महादेव का मंदिर कहलाया और आज वीरेवर महादेव के मंदिर के रूप म मशहूर है|

अपने जीवन के अंतिम समय में बीरबल ने भक्ति, नीति और ज्ञान विषयक कविताएं लिखीं | बीरबल कि पत्नी का देहवसान काफी पहले ही हो गया था- बीरबल के दो पुत्र और एक पुत्री थी- इनकी पुत्री का विवाह मशहूर कवि घाघ के भतीजे आशादत्त के साथ हुआ था- बताते हैं कि बीरबल कि पुत्री बीरबल से भी अधिक बुद्धिमान थी और विकट परिस्तिथियों में इनकी सहायता करती थी |

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, बीरबल का वास्तविक नाम महेशदास था- जबकि कुछ इस नाम को स्वीकार नहीं करते |

बीरबल और तीन गुडि़यां

एक बार एक कलाकार तीन सुन्दर गुडि़यों को लेकर बादशाह अकबर के दरबार में आया। ये गुडि़यां बिल्कुल एक समान थी। उनमें इतनी समानता थी कि उनके बीच अंतर करना बहुत मुश्किल था। अकबर को गुडि़यां बहुत प्यारी लगी। उसने कहा, ”ये गुडि़यां मुझे बेच दो और मैं तुम्हें इनकी अच्छी कीमत दूंगा।“

कलाकार ने कहा, ”जहांपनाह! ये गुडि़यां बेचने के लिए नहीं हैं। बेशक मैं आपको ये उपहार के रूप में दे दूंगा यदि आपके दरबार में कोई यह बता दे कि तीनों में से अच्छी कौन सी है।“ यह एक अजीब पहेली थी। अकबर ने गुडि़यों को उठाया और करीब से देखा। किंतु तीनों गुडि़यों में इतनी समानता थी कि अकबर यह नहीं कह सका कि कौन सी अच्छी है। तब उसके प्रत्येक मंत्री ने इस पहेली को सुलझाने की कोशिश की, परंतु वे असफल रहे।

अकबर ने बीरबल को बुलाकर कहा, ”बीरबल तुम क्यों नहीं कोशिश करते। मुझे विश्वास है कि तुम इस पहेली को हल कर लोगे।“ बीरबल अकबर की ओर सम्मान से झुका और गुडि़यों के पास गया। उसने प्रत्येक गुडि़या को हाथ में उठाया और बड़ी बारीकी से उनको देखा। हर कोई आश्चर्यचकित था। उसने एक गुडि़या के कान में फूंक मारी। हवा उसके दूसरे कान से बाहर आ गई। फिर उसने दूसरी गुडि़या के कान में फृंक मारी, किंतु इस बार हवा उसके मुंह से निकली। जब बीरबल ने तीसरी गुडि़या के कान में फूंक मारी तो हवा कहीं से भी बाहर नहीं निकली।

बीरबल ने कहा, ”जहांपनाह! यह तीसरी गुडि़या ही इन तीनों में सबसे अच्छी है।“ अकबर हैरान हो गया। उसने कहा, ”तुमने यह कैसे जान लिया?“

बीरबल ने कहा, ”मेरे मालिक! यह तीनों गुडि़यां तीन व्यक्तियों की तरह हैं। जब मैंने पहली गुडि़या के कान में फूंक मारी, तो यह दूसरे कान से बाहर आ गई। ऐसे ही जब हम एक रहस्य किसी दूसरे व्यक्ति को बताते हैं तो वह अगले ही पल उसे भूल जाता है।

जब मैंने दूसरी गुडि़या के कान में फूंक मारी, तो वह उसके मुंह से बाहर निकल गयी। ऐसे ही कुछ व्यक्ति जो कुछ सुनते हैं, उसे शीघ्र ही दूसरे व्यक्ति को बता देते हैं। ऐसे व्यक्ति कभी रहस्य को छुपाकर नहीं रख सकते। किंतु जब तीसरी गुडि़या के कान में फूंक मारी, तो हवा कहीं से भी बाहर नहीं आई। इस तरह के व्यक्ति अच्छे होते हैं, जो रहस्य को छुपाकर रखते हैं। आप इन्हें कोई भी रहस्य की बात बता सकते हैं।“

कलाकार ने कहा, ”मैंने अभी तक केवल बीरबल के ज्ञान के बारे में सुना था, किन्तु आज मैंने इसे देख भी लिया। जहांपनाह, ये गुडि़यां आपकी हैं।“

अकबर ने कहा उसे बीरबल पर बहुत गर्व है।

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